मेहर चंद पॉलिटेक्निक कॉलेज के पूर्व छात्रों ने साझा किए अपने-अपने अनुभव

न्यूज़ 360 ब्रॉडकास्ट (जालंधर/एजुकेशन)

एजुकेशन: मेहर चंद पॉलिटेक्निक कॉलेज जालंधर में प्लैटिनम जुबली समारोह की तैयारियों की समीक्षा करने के लिए लगभग 45 पुराने पूर्व छात्र सदस्य एकत्र हुए और कॉलेज से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। कई विद्यार्थियों ने विदेश से भी अपने संदेश भेजे। यह बैठक पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष श्री अजय गोस्वामी की अध्यक्षता में आयोजित की गई। प्रारंभ में प्राचार्य डॉ. जगरूप सिंह ने सभी का स्वागत किया तथा आगामी प्लैटिनम जुबली के लिए संस्था के चल रहे अभियान एवं किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला।

डॉ. आरके धवन :- मैं इस कॉलेज के मैकेनिकल विभाग का पहला छात्र रहा हूं। यहां पर लेक्चरर बन गया। विभागाध्यक्ष और फिर प्राचार्य। अनेक विषयों पर पुस्तकें लिखीं, जो सम्पूर्ण भारत में पढ़ी जाती हैं। मैं इस कॉलेज का उपहार कभी नहीं भूल सकता।

श्री अजीत गोस्वामी :- मैंने 1961 में इसी कॉलेज से डिप्लोमा किया था। लेकिन मेरे पिता लाला चंचलदास जी प्रिंसिपल थे, जो सिद्धांतों के पक्के थे। उन्होंने कहीं भी अनुशंसा नहीं की. मैं भी धुन का पक्का था। वह अपनी मंजिल की ओर बढ़े और भारतीय आयुध निर्माणी सेवा से निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुआ । अब मोटिवेशनल स्पीकर और कई किताबें लिखी गई हैं। श्री आर.के. चौधरी: मेहर चंद पॉलिटेक्निक में इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा के एक साधारण छात्र थे। कॉलेज का नाम हर जगह था। जे. ई. वह बिजली विभाग में काम करने लगे। यूनियन में कर्मचारियों के लिए लड़ें और कई डिप्लोमा छात्रों को उनका हक दिलवाया । वह स्वयं एक एक्सियन के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

एन. एल. अरोड़ा :- इस कॉलेज से सिविल में डिप्लोमा। ए.एम.आई.ई. किया और फिर मास्टर्स भी किया। कॉलेज का रुतबा ऐसा था कि रिटायर होने के बाद वह प्रिंसिपल भी बने और डायरेक्टर भी. मुझे इस कॉलेज से जो कुछ भी मिला, उसका मैं ऋणी हूं।

सुरिंदर सिंह :- कॉलेज से सिविल में डिप्लोमा। यहां शिक्षकों के सानिध्य में जीवन का सूक्ष्म ज्ञान मिला, फिर पेंट उद्योग की शुरुआत हुई, जिसका आज जालंधर में कोई नामलेवा नहीं है। उन्हें गाने का शौक है, इस उम्र में भी वह मोहम्मद रफी के गाने गा सकते हैं। कॉलेज आकर बहुत खुशी मिलती है। इस कॉलेज के लिए मैं जो भी कर सकूं कम होगा।

राजन जांगड़ा :- उन्होंने इसी कॉलेज से सिविल डिप्लोमा पूरा करके अपनी जीवन यात्रा शुरू की। यहां न सिर्फ एन.सी.सी. को कॉलेज का रंग मिला बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों में भी कॉलेज का रंग चढ़ा। दो रंग पाने वाले प्रथम छात्र। 11 साल तक दुबई में प्रोजेक्ट हेड के तौर पर काम किया। आज भी मुझे शिक्षकों का योगदान याद है। मानवता का पाठ भी यहीं से सीखा। प्रोग्राम के अंत में अध्यक्ष अजय गोस्वामीजी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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